Shri Lalitha Trishati Stotram in sanskrit
Shri Lalitha Trishati Stotram in sanskrit. Lalitha Trishati Stotra is consist of 300 names of Goddess Lalita. Chanting this stotra gives you prosperity.
Lalitha Trishati Stotra
॥ अथ श्रीललितात्रिशती स्तोत्रम् ॥
ककाररूपा कल्याणी कल्याणगुणशालिनी ।
कल्याणशैलनिलया कमनीया कलावती ॥ १॥
कमलाक्षी कल्मषघ्नी करुणामृत सागरा ।
कदम्बकाननावासा कदम्ब कुसुमप्रिया ॥ २॥
कन्दर्पविद्या कन्दर्प जनकापाङ्ग वीक्षणा ।
कर्पूरवीटी सौरभ्य कल्लोलित ककुप्तटा ॥ ३॥
कलिदोषहरा कंजलोचना कम्रविग्रहा ।
कर्मादि साक्षिणी कारयित्री कर्मफलप्रदा ॥ ४॥
एकाररूपा चैकाक्षर्येकानेकाक्षराकृतिः ।
एतत्तदित्यनिर्देश्या चैकानन्द चिदाकृतिः ॥ ५॥
एवमित्यागमाबोध्या चैकभक्ति मदर्चिता ।
एकाग्रचित्त निर्ध्याता चैषणा रहिताद्दृता ॥ ६॥
एलासुगंधिचिकुरा चैनः कूट विनाशिनी ।
एकभोगा चैकरसा चैकैश्वर्य प्रदायिनी ॥ ७॥
एकातपत्र साम्राज्य प्रदा चैकान्तपूजिता ।
एधमानप्रभा चैजदनेकजगदीश्वरी ॥ ८॥
एकवीरादि संसेव्या चैकप्राभव शालिनी ।
ईकाररूपा चेशित्री चेप्सितार्थ प्रदायिनी ॥ ९॥
ईद्दृगित्य विनिर्देश्या चेश्वरत्व विधायिनी ।
ईशानादि ब्रह्ममयी चेशित्वाद्यष्ट सिद्धिदा ॥ १०॥
ईक्षित्रीक्षण सृष्टाण्ड कोटिरीश्वर वल्लभा ।
ईडिता चेश्वरार्धाङ्ग शरीरेशाधि देवता ॥ ११॥
ईश्वर प्रेरणकरी चेशताण्डव साक्षिणी ।
ईश्वरोत्सङ्ग निलया चेतिबाधा विनाशिनी ॥ १२॥
ईहाविराहिता चेश शक्ति रीषत् स्मितानना ।
लकाररूपा ललिता लक्ष्मी वाणी निषेविता ॥ १३॥
लाकिनी ललनारूपा लसद्दाडिम पाटला ।
ललन्तिकालसत्फाला ललाट नयनार्चिता ॥ १४॥
लक्षणोज्ज्वल दिव्याङ्गी लक्षकोट्यण्ड नायिका ।
लक्ष्यार्था लक्षणागम्या लब्धकामा लतातनुः ॥ १५॥
ललामराजदलिका लम्बिमुक्तालताञ्चिता ।
लम्बोदर प्रसूर्लभ्या लज्जाढ्या लयवर्जिता ॥ १६॥
ह्रींकार रूपा ह्रींकार निलया ह्रींपदप्रिया ।
ह्रींकार बीजा ह्रींकारमन्त्रा ह्रींकारलक्षणा ॥ १७॥
ह्रींकारजप सुप्रीता ह्रींमती ह्रींविभूषणा ।
ह्रींशीला ह्रींपदाराध्या ह्रींगर्भा ह्रींपदाभिधा ॥ १८॥
ह्रींकारवाच्या ह्रींकार पूज्या ह्रींकार पीठिका ।
ह्रींकारवेद्या ह्रींकारचिन्त्या ह्रीं ह्रींशरीरिणी ॥ १९॥
हकाररूपा हलधृत्पूजिता हरिणेक्षणा ।
हरप्रिया हराराध्या हरिब्रह्मेन्द्र वन्दिता ॥ २०॥
हयारूढा सेवितांघ्रिर्हयमेध समर्चिता ।
हर्यक्षवाहना हंसवाहना हतदानवा ॥ २१॥
हत्यादिपापशमनी हरिदश्वादि सेविता ।
हस्तिकुम्भोत्तुङ्क कुचा हस्तिकृत्ति प्रियांगना ॥ २२॥
हरिद्राकुंकुमा दिग्धा हर्यश्वाद्यमरार्चिता ।
हरिकेशसखी हादिविद्या हालामदोल्लसा ॥ २३॥
सकाररूपा सर्वज्ञा सर्वेशी सर्वमङ्गला ।
सर्वकर्त्री सर्वभर्त्री सर्वहन्त्री सनातना ॥ २४॥
सर्वानवद्या सर्वाङ्ग सुन्दरी सर्वसाक्षिणी ।
सर्वात्मिका सर्वसौख्य दात्री सर्वविमोहिनी ॥ २५॥
सर्वाधारा सर्वगता सर्वावगुणवर्जिता ।
सर्वारुणा सर्वमाता सर्वभूषण भूषिता ॥ २६॥
ककारार्था कालहन्त्री कामेशी कामितार्थदा ।
कामसंजीविनी कल्या कठिनस्तन मण्डला ॥ २७॥
करभोरुः कलानाथ मुखी कचजिताम्भुदा ।
कटाक्षस्यन्दि करुणा कपालि प्राण नायिका ॥ २८॥
कारुण्य विग्रहा कान्ता कान्तिधूत जपावलिः ।
कलालापा कंबुकण्ठी करनिर्जित पल्लवा ॥ २९॥
कल्पवल्ली समभुजा कस्तूरी तिलकाञ्चिता ।
हकारार्था हंसगतिर्हाटकाभरणोज्ज्वला ॥ ३०॥
हारहारि कुचाभोगा हाकिनी हल्यवर्जिता ।
हरित्पति समाराध्या हठात्कार हतासुरा ॥ ३१॥
हर्षप्रदा हविर्भोक्त्री हार्द सन्तमसापहा ।
हल्लीसलास्य सन्तुष्टा हंसमन्त्रार्थ रूपिणी ॥ ३२॥
हानोपादान निर्मुक्ता हर्षिणी हरिसोदरी ।
हाहाहूहू मुख स्तुत्या हानि वृद्धि विवर्जिता ॥ ३३॥
हय्यङ्गवीन हृदया हरिकोपारुणांशुका ।
लकाराख्या लतापूज्या लयस्थित्युद्भवेश्वरी ॥ ३४॥
लास्य दर्शन सन्तुष्टा लाभालाभ विवर्जिता ।
लङ्घ्येतराज्ञा लावण्य शालिनी लघु सिद्धिदा ॥ ३५॥
लाक्षारस सवर्णाभा लक्ष्मणाग्रज पूजिता ।
लभ्यतरा लब्ध भक्ति सुलभा लाङ्गलायुधा ॥ ३६॥
लग्नचामर हस्त श्रीशारदा परिवीजिता ।
लज्जापद समाराध्या लंपटा लकुलेश्वरी ॥ ३७॥
लब्धमाना लब्धरसा लब्ध सम्पत्समुन्नतिः ।
ह्रींकारिणी च ह्रींकारी ह्रींमध्या ह्रींशिखामणिः ॥ ३८॥
ह्रींकारकुण्डाग्नि शिखा ह्रींकार शशिचन्द्रिका ।
ह्रींकार भास्कररुचिर्ह्रींकारांभोद चञ्चला ॥ ३९॥
ह्रींकार कन्दाङ्कुरिका ह्रींकारैक परायणाम् ।
ह्रींकार दीर्घिकाहंसी ह्रींकारोद्यान केकिनी ॥ ४०॥
ह्रींकारारण्य हरिणी ह्रींकारावाल वल्लरी ।
ह्रींकार पञ्जरशुकी ह्रींकाराङ्गण दीपिका ॥ ४१॥
ह्रींकार कन्दरा सिंही ह्रींकाराम्भोज भृङ्गिका ।
ह्रींकार सुमनो माध्वी ह्रींकार तरुमंजरी ॥ ४२॥
सकाराख्या समरसा सकलागम संस्तुता ।
सर्ववेदान्त तात्पर्यभूमिः सदसदाश्रया ॥ ४३॥
सकला सच्चिदानन्दा साध्या सद्गतिदायिनी ।
सनकादिमुनिध्येया सदाशिव कुटुम्बिनी ॥ ४४॥
सकालाधिष्ठान रूपा सत्यरूपा समाकृतिः ।
सर्वप्रपञ्च निर्मात्री समनाधिक वर्जिता ॥ ४५॥
सर्वोत्तुङ्गा संगहीना सगुणा सकलेश्वरी । सकलेष्टदा
ककारिणी काव्यलोला कामेश्वर मनोहरा ॥ ४६॥
कामेश्वरप्रणानाडी कामेशोत्सङ्ग वासिनी ।
कामेश्वरालिंगितांगी कमेश्वर सुखप्रदा ॥ ४७॥
कामेश्वर प्रणयिनी कामेश्वर विलासिनी ।
कामेश्वर तपः सिद्धिः कामेश्वर मनः प्रिया ॥ ४८॥
कामेश्वर प्राणनाथा कामेश्वर विमोहिनी ।
कामेश्वर ब्रह्मविद्या कामेश्वर गृहेश्वरी ॥ ४९॥
कामेश्वराह्लादकरी कामेश्वर महेश्वरी ।
कामेश्वरी कामकोटि निलया काङ्क्षितार्थदा ॥ ५०॥
लकारिणी लब्धरूपा लब्धधीर्लब्ध वाञ्चिता ।
लब्धपाप मनोदूरा लब्धाहंकार दुर्गमा ॥ ५१॥
लब्धशक्तिर्लब्ध देहा लब्धैश्वर्य समुन्नतिः ।
लब्धवृद्धिर्लब्धलीला लब्धयौवन शालिनी ॥ ५२॥ लब्धबुधिः
लब्धातिशय सर्वाङ्ग सौन्दर्या लब्ध विभ्रमा ।
लब्धरागा लब्धपतिर्लब्ध नानागमस्थितिः ॥ ५३॥ लब्धगति
लब्ध भोगा लब्ध सुखा लब्ध हर्षाभि पूजिता ।
ह्रींकार मूर्तिर्ह्रीण्कार सौधशृंग कपोतिका ॥ ५४॥
ह्रींकार दुग्धाब्धि सुधा ह्रींकार कमलेन्दिरा ।
ह्रींकारमणि दीपार्चिर्ह्रींकार तरुशारिका ॥ ५५॥
ह्रींकार पेटक मणिर्ह्रींकारदर्श बिम्बिता ।
ह्रींकार कोशासिलता ह्रींकारास्थान नर्तकी ॥ ५६॥
ह्रींकार शुक्तिका मुक्तामणिर्ह्रींकार बोधिता ।
ह्रींकारमय सौवर्णस्तम्भ विद्रुम पुत्रिका ॥ ५७॥
ह्रींकार वेदोपनिषद् ह्रींकाराध्वर दक्षिणा ।
ह्रींकार नन्दनाराम नवकल्पक वल्लरी ॥ ५८॥
ह्रींकार हिमवद्गङ्गा ह्रींकारार्णव कौस्तुभा ।
ह्रींकार मन्त्र सर्वस्वा ह्रींकारपर सौख्यदा ॥ ५९॥
॥ इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे उत्तराखण्डे श्री हयग्रीवागस्त्यसंवादे श्रीललितात्रिशती स्तोत्र कथनं सम्पूर्णम् ॥
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