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भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये बजरंग बाण (Hanuman Bajrang Baan) का विलक्षण प्रयोग किया जाता है | कहा जाता है कि बजरंग बाण का पाठ करने से बड़ी से बड़ी परेशानी भी दूर हो जाती है.
बजरंग बाण (Bajrang Baan) का जप और पाठ मंगलवार या शनिवार के दिन शुरु करें | बजरंग बाण (hanuman baan lyrics) के नित्य पाठ से व्यक्ति के तन, मन और धन से जुड़े सभी कलह और संताप दूर होते हैं और भौतिक सुख प्राप्त होते हैं | बजरंग बाण का पाठ करने से व्यक्ति को अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है. वहीं, लंबे समय से कार्यों में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं और अटके हुए कार्य पूरे होते हैं. – हर मंगलवार बजरंग बाण का पाठ करने से व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि आती है.
बजरंग बाण का पाठ करते समय शब्दों का स्पष्ट उच्चारण अवश्य करें. किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए कम से कम 41 दिनों तक नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करें.
बजरंग बाण के पाठ की विधि
- मंगलवार के दिन साफ कपड़े पहनकर सूर्योदय से पहले स्नान कर लें।
- पूजा स्थान पर भगवान हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करें।
- बजरंग बाण शुरू करते समय सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें क्योंकि वे सबसे पहले पूजनीय देवता हैं।
- फिर भगवान राम और माता सीता का ध्यान करें।
- हनुमान जी के सामने धूप और दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
- कुश का आसन जमीन पर रखें और बजरंग बाण का पाठ करना शुरू करें।
- पाठ पूरा होने के बाद भगवान राम को याद करें और उनका जाप करें।
- हनुमान जी को चूरमा, लड्डू और अन्य मौसमी फलों का प्रसाद चढ़ाया जा सकता है।
श्री बजरंग बाण पाठ | Bajrang baan lyrics in hindi
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
दोहा :
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।
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